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سامي ملا أحمد نامي : اعتُقلتُ لأني صرختُ عاشت الأخوة الكوردية العربية
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سامي ملا أحمد نامي
سامي ملا أحمد نامي
سامي ملا أحمد نامي لرووداو: اعتُقلتُ لأني صرختُ عاشت الأخوة الكوردية العربية
في تاريخ كل أمة، ثمة شخصيات تُعرف بالأراشيف الحية. هذه الشخصيات ليست شهوداً على العصر فحسب، بل يحملون روح ذلك الزمان في عقولهم ووجدانهم. سامي أحمد نامي هو واحد من هؤلاء، رجلٌ يطوي في صدره تفاصيل القرن المنصرم لكورد سوريا. فهو ابن المثقف والشاعر ورائد التعليم الكوردي ملا أحمد نامي، ولكنه في الوقت ذاته صاحب سيرة ذاتية فريدة، تصله بجذور التنوير الكوردي، لا سيما في غربي كوردستان (روجآفاى كوردستان).
في هذا الحوار العميق والموسع، يدعونا سامي نامي إلى رحلة ساحرة نحو أربعينيات وخمسينيات القرن الماضي. يأخذنا إلى ديوان آل حاجو في تربه سبيه، حيث كان يجلس أمير الكورد جلادت بدرخان.
سامي، الذي كان طفلاً نبيهاً حينها، يتقدم بشجاعة أمام الأمير ليلقي قصيدة. وبمحبة غامرة، ينهض جلادت بدرخان، ويحتضن الطفل الكوردي ويقبّله. هذه الذكرى ليست مجرد نستالجيا طفولية، بل دلالة على كيفية تمرير جيل هاوار الشعلة للأجيال الجديدة.
لكن التاريخ لا يُكتب بالذكريات الجميلة فقط، بل يتطلب نضالاً وتضحيات جمة. يسرد سامي نامي ببراعة تفاصيل كفاح والده ملا أحمد نامي، وكيف كان يحارب الجهل في مجتمع متخلف. حين كان الناس يقولون الذهاب إلى المدرسة إثم، لم يكتفِ الملا نامي بإرسال أبنائه وبناته إلى المدرسة، بل افتتح مدرسة للفتيات في قرية تل شعير آشيتا. كما تحتل العلاقة العميقة بين والده وشقيق الروح جكرخوين، اللذين كانا يتبادلان القصائد والتهاني، حيزاً خاصاً في هذا الحوار.
جزء بالغ الأهمية من هذه الوثيقة التاريخية، هو زيارة ملا أحمد نامي إلى بغداد. يروي سامي نامي كيف استطاع والده عام 1958، وبصعوبة بالغة، الحصول على جواز سفر ليلتقي بالملا مصطفى البارزاني. يصف بدقة ذلك الاستقبال الحار حين قال البارزاني الخالد لسكرتيره: ضيفي عزيز جداً على قلبي؛ كوردي، وضيف، وملا، وشاعر.
من مأساة =KTML_Bold=حريق سينما عامودا=KTML_End= وصولاً إلى نقل رفات والده إلى مثواه الأخير عام 2023، لا يروي سامي نامي في هذا الحوار قصة عائلة فحسب، بل يبسط أمامنا قصة المقاومة الثقافية والقومية لكورد غربي كوردستان.
تفضلوا، لنصغِ معاً إلى هذا الصوت الأصيل وتلك الذاكرة الصافية، ولندعه يطوف بنا في رحاب فصلٍ من تاريخ كوردستان.
=KTML_Bold=نص الحوار:=KTML_End=
رووداو: نود أن نبدأ بطفولتك. لقد نشأت في قرية تل شعير آشيتا شرقي القامشلي، في كنف عائلة وطنية ومثقفة. والدكم، الأستاذ ملا أحمد نامي، كان شخصية محورية. هل لك أن تحدثنا عن طفولتك والتأثير الأول لوالدك على وعيك وشخصيتك؟
سامي نامي: تفتق ذهني ووعي ومعتقداتي على الكوردايتي (الروح القومية الكوردية) في سن مبكرة جداً. فقد كان والدي كاتباً وشاعراً، وعضواً فعالاً في كافة التنظيمات السياسية آنذاك، مثل جمعية خويبون، وجمعية مساعدة فقراء الكورد في الجزيرة، وجمعية الحرية والوحدة الكوردية، ونادي شباب الكورد في عامودا.
في المنزل، كنت أستمع مع شقيقاتي إلى قصائد والدي، وكنا نحفظ بعضها عن ظهر قلب. وبحكم أنني كنت الابن الوحيد والمدلل في البيت، كنت أرافق والدي كثيراً في نشاطاته القومية، وبهذه الطريقة رأيت وتعرفت على نخبة من السياسيين والوطنيين الكورد، أمثال: جلادت عالي بدرخان، الدكتور أحمد نافذ بك، الدكتور نور الدين زازا، الشاعر جكرخوين، الشاعر هزار موكرياني، عبد الرحمن آغا علي يونس، عارف بك عباس، قدري جان، العم عثمان صبري، قدري بك جميل باشا، أكرم بك جميل باشا، حسن آغا حاجو، جميل آغا حاجو، محمد علي شويش، ملا أحمد شوزي، ملا أحمد زفنكي، حسن هشيار، رشيد كورد، وعبدي تلو...
=KTML_Bold=اسم عشيرتنا كوردستان=KTML_End=
رووداو: في ذكرياتك قصة لافتة جداً، حين سألت والدك: ما هي عشيرتنا؟ فأجابك: نحن كورد وكوردستانيون. هل لك أن تروي لنا هذه الحادثة؟
سامي نامي: كنا لا نزال نسكن في قرية تل شعير آشيتا. ذات يوم كنت ألعب مع أصدقائي الأطفال ، وأثناء اللعب كان كل واحد منهم يتباهى قائلاً: أنا من العشيرة الفلانية، وبما أنني لم أكن أعرف اسم عشيرتي، لذتُ بالصمت. عدتُ مسرعاً إلى البيت وقلت لوالدي: أبي، ما هو اسم عشيرتنا؟ كي أخبر أصدقائي. التفت إليّ والدي وقال: يا بني، قل لأصدقائك: عشيرتي أكبر من عشائركم جميعاً، وإذا أردتم أن تعرفوا، فأنا كوردي وكوردستاني، وكفى!. وهكذا غمرني السرور، وابتهج أصدقائي أيضاً بهذا الجواب.
أ=KTML_Bold=شعة هاوار أنارت عالم الكورد=KTML_End=
رووداو: كنت واحداً ممن تعلموا القراءة والكتابة بالكوردية بالأحرف اللاتينية في مدرسة والدك الليلية. هل لك أن تحدثنا عن تلك الحقبة، وعن الشغف والحماسة لتعلم اللغة الأم في تلك الظروف الصعبة؟
سامي نامي: نعم، عندما عاد إصدار مجلة هاوار، كانت كشمس بازغة أنارت أشعتها عالم الكورد. الشعب الكوردي، وكعادته في الكرم والبهجة، أقبل بحرارة على تعلم لغة الآباء والأجداد؛ المتعلمون يعلّمون الأميين القراءة والكتابة. كان ملا أحمد نامي أحد تلامذة الأمير جلادت الذين أخذوا على عاتقهم تعليم الشعب. افتتح نامي مدرسة ليلية في قريته تل شعير آشيتا داخل غرفة من غرف المدرسة الرسمية. كان شباب القرية وكبار السن يتجهون كل ليلة نحو المدرسة، حقائب الأبجدية والأقلام والدفاتر معلقة على أكتافهم، يجلسون بانتظام داخل غرفة الصف، وكان نامي، معلم القراءة الكوردية، يعلمهم.
كان من تلامذة مدرسة نامي الكوردية: يوسف عبدي يوسف، محمد أمين سلمو، ملا محمد بياندوري، سليمان أوسي، أحمد حسو محمد، عبد المجيد محمد، حمو سليمان عيسى، صالح إبراهيم خوتلي، درويش حمزو عبدي، داوود علو عبيس، سليم إبراهيم جله، عباس جلبي، يوسف جمعة عز الدين، سليمان جمعة عز الدين، عبد العزيز علي عبدي، سامي ملا أحمد نامي، رستم عمر رستم، جميل عيسو (كورد شمو). كما كان هناك عدد من الشباب السريان ضمن تلامذة نامي: لبيب خوري، داوود شاموشو، لحدو وماروكى ملكي قرو، يوحانون كورية، موسى سيحي، وإبراهيم كلي. إضافة إلى عدد من الشباب اليهود مثل الإخوة: باروخ، يوسف، وشمعون سليمانكى اليهودي.
من بين تلاميذ هذه المدرسة، كان أحمد حسو محمد الأكثر تمكناً من القراءة والكتابة، وكان يكتب الحروف الكوردية بخط جميل جداً على السبورة، وكان أستاذه (نامي) يثني عليه دائماً. أما حمو سليمان عيسى فكان تلميذاً مسناً في هذه المدرسة. وحين كان البعض يسأله: لماذا تتعب نفسك بالدراسة هكذا؟ كان جوابه: أملي الكبير أن أقرأ وأكتب بالكوردية يوماً ما، وأن أقرأ مجلة هاوار وديوان جكرخوين بسهولة. يقول يوسف عبدي: ذات يوم، وبعد عدة أشهر من الدراسة، رأيت حمو مستلقياً على سفح التل الكبير، متكئاً على فروته، يقرأ ديوان الشاعر جكرخوين.
=KTML_Bold=نامي وافتتاح مدرسة البنات=KTML_End=
رووداو: خاض الأستاذ نامي نضالاً كبيراً لافتتاح المدارس، لا سيما مدرسة البنات في تل شعير. في ذلك المجتمع المحافظ آنذاك، كانت هذه خطوة تقدمية. هل لك أن تحدثنا عن هذه المحاولات وردود فعل المجتمع؟ في أي عام كان ذلك، ومن كان يُدرّس فيها، ومن هن الطالبات، وبأي لغة كانت الدراسة، وما هي الصعوبات التي واجهتكم؟
سامي نامي: نعم، في الأربعينيات، كان هناك عدد من القرويين الجهلة الذين رفضوا إرسال أطفالهم إلى المدرسة، وحين كانوا يرون بعض الطلاب كانوا يقولون: يا للمسكين، هؤلاء الأطفال الأبرياء سيصبحون كفاراً بذهابهم للمدرسة!. لكن قرار نامي بمحاربة الجهل كان صارماً، وكان مصمماً على ألا يتراجع عن الدرب الذي سلكه مهما حدث. كلما حورب أكثر، ازداد إصراراً. حتى جاء يوم لم يبق فيه طفل في قرية تل شعير إلا والتحق بالمدرسة. ولكن، حتى حقق نامي أهدافه، عانى الكثير من الظلم والمشقة. لقد حورب بشدة بسبب إرسال الأولاد، وكان الأمر أصعب بكثير حين طالب الآباء بإرسال بناتهم إلى المدرسة.
أرسل نامي ابنتيه فريال وكولبري إلى مدرسة الذكور في القرية، لكي يقتدي به بعض القرويين الواعين ويرسلوا بناتهم أيضاً، وقد نجح ذلك وأرسل البعض بناتهم. عندها، وضع نامي نصب عينيه هدفاً جديداً: افتتاح مدرسة خاصة للبنات في قريته. في عام 1950، وبعد عمل دؤوب مع مسؤولي التربية في محافظة الحسكة، تمكن نامي من افتتاح مدرسة رسمية للبنات في قرية تل شعير آشيتا.
كان افتتاح هذه المدرسة مدعاة لفخر وحماسة كبيرين بين أهالي القرية، لا سيما الفتيات وأولياء أمورهن الذين كانوا يرفضون إرسال بناتهم لمدرسة الذكور حيث المعلمون رجال أيضاً. بدأ العام الدراسي. كانت طالبات هذه المدرسة الابتدائية هن: فريال ملا أحمد نامي، كولبري ملا أحمد نامي، بديعة علي عبدي، كولجين يوسف عبدي، أسماء ميرزا خلف، صافيا أوسي سلي، أنيسة ملا خليل، خديجة حمو رمو، شاها أوسي حجي إبراهيم، خنساء عمركى تيريكا، وآخرون ممن لا تحضرني أسماؤهم.
معلمة المدرسة كانت شابة عربية من دمشق تدعى رفاعية أحدب. كانت تقول: مسؤولو التربية في الحسكة طمأنوا قلبي وأبعدوا عني المخاوف. أخبروني أن ملا القرية، نامي، رجل عالم وموثوق، وسيكون عوناً لك. وأن أهل القرية كورد، يعرفون قيمة العلم، والمعلم لديهم مبجل، وهم يحترمون الغرباء كثيراً. والمرأة في المجتمع الكوردي ذات قيمة ومكانة، ينظرون إليها بعين الكبر لا بعين النقص.
في بداية العام الدراسي 1951، أصبحت شابة كوردية من مدينة الحسكة تدعى هدية شيخو جاجان معلمة للمدرسة. وكما المعلمة السابقة، كانت تقيم وتأكل وتشرب في منزل نامي. كانت المعلمة هدية تعلم طالباتها القراءة والكتابة، كما علمت الأطفال قصيدة نامي المسماة نشيد ونداء الفتيات:
(يا إخوتي الأعزاء تعالوا أيها الشباب
الوطن جنة فلنمضِ أيها الكرام
إذا لم تأتوا، ها نحن الفتيات سائرات
كفى عبودية، لنعش مرفوعي الرأس)
كل يوم في الاجتماع الصباحي، كانت طالبات المدرسة ينشدن نشيدين. الأول هو النشيد الوطني السوري آنذاك حماة الديار، والثاني قصيدة نامي نشيد ونداء الفتيات، ثم يبدأ اليوم الدراسي. وبالنتيجة، يمكن القول إن نامي بعمله ونضاله في ميدان الكوردايتي، استطاع أن يجعل من هذه المدرسة مدرسة للغتين الكوردية والعربية.
لكن للأسف، لم يمر ذلك العمل الهام بسلام وسهولة. أبدى عدد من الرجعيين والمحافظين، وبعض المتصوفين والحجاج في القرية، استياءهم سواء سراً أو علانية من افتتاح المدرسة، ووجهوا انتقادات لاذعة لنامي قائلين: بافتتاح مدرسة البنات، نصب نامي خيمة الشيطان على قمة تل شعير. لم نخلص من مدرسة الصبيان، حتى جاءتنا مدرسة البنات!.
يقول نامي في إحدى قصائده:
(كم هو صعب الجهل، القبر أرحم منه
ما الوجود بالنسبة لنا، لا ناقة لنا فيها ولاجمل)
ذات يوم، كان نامي مع عدد كبير من القرويين في غرفة آغا القرية. وقف رجل حاج من المحافظين، وتوجه للحضور قائلاً: يا جماعة، اسمعوا ما سأقوله، سأدعو دعوة ورددوا من بعدي آمين. بافتتاح مدرسة البنات، لا شك أن أطفالنا سيصبحون ملحدين وكفاراً. لذا، ليكون إثمُنا، وإثم آبائنا وأجدادنا وأطفالنا في رقبة الملا نامي إلى يوم القيامة. فردد المحافظون في المجلس، ممن كانوا يشاطرونه الرأي، بصوت واحد: آمين!
=KTML_Bold=نقل الرفات=KTML_End=
رووداو: في 20 -05- 2023، وبجهودكم، تم نقل رفات الأستاذ نامي من مقبرة قدور بك في القامشلي إلى قريته تل شعير. كيف اتخذ هذا القرار، وماذا يعني هذا الحدث لك وللعائلة؟
سامي نامي: في يوم#11-12-1975# انتقل الكاتب واللغوي والشاعر ملا أحمد نامي إلى رحمة الله في مدينة القامشلي. عندما كان لا يزال على قيد الحياة ولكنه مريض جداً، كانت رغبته أن يُدفن في مقبرة قرية تل شعير آشيتا، لأنه قام بعمل بارز في تلك القرية، حيث كان ملا القرية ومسؤول مدرسة الذكور الرسمية، ثم عمل بلا كلل لافتتاح مدرسة للبنات، في وقت لم تكن توجد فيه مدارس للبنات إلا في مدينة القامشلي. وافتتح مدرسة لتعليم اللغة الكوردية بالأحرف اللاتينية وأصبح مُعلّمَ المدرسةِ التي كانت تُعلِّمُ شبابَ وشيوخَ القرية. للأسف، وبسبب ظروف قاهرة، اضطررنا لدفنه في مقبرة قدور بك في القامشلي. لكن عائلة نامي ظلت حزينة لأن رغبته لم تتحقق، وبقينا ننتظر الفرصة لتنفيذ وصيته. أخيراً، وفي #20-05-2023# ، قمنا بنقل رفات نامي ورفات زوجته بحماسة كبيرة، وبحضور عدد من المثقفين ومحبي اللغة الكوردية والسياسيين والشباب والرجال والنساء، إلى القرية، حيث وريا الثرى في قبر واحد، ولُف قبرهما بعلم كوردستان، ووُدعا بقصائد نامي وكلمات وقصائد المشاركين.
حريق سينما عامودا
رووداو: كتب والدك كتاب حريق سينما عامودا، الذي أصبح وثيقة تاريخية فريدة. يقول جليلى جليل عن هذه التحفة: عندما قرأت كتاب نامي، حريق سينما عامودا، أبكاني نامي بتلك القصة وأسلوب كتابتها. وقعت الكارثة عام 1960. كم كان عمرك آنذاك، وماذا تذكر من تلك الفترة؟
سامي نامي: في #13-10-1960# أُحرقت سينما عامودا. كتب نامي كتاباً بعنوان حريق سينما عامودا طُبع ونُشر عدة مرات. في ذلك الوقت كان عمري 22 عاماً، وبصفتي عضواً في لجنة منطقة الجزيرة للحزب الديمقراطي الكوردي في سوريا، كنت مع رئيس وأعضاء اللجنة المركزية وأعضاء اللجنة المنطقية وعدد من أعضاء الحزب من كافة المناطق الكوردية، مسجونين في سجن المزة بدمشق العاصمة، ونُحاكم أمام المحكمة العسكرية العليا. في صباح يوم الحادثة، كنا نستمع لإذاعة دمشق، ومن خلال الأخبار علمنا باحتراق سينما عامودا واحتراق عدد كبير من طلاب مدارس عامودا. حينها، أرسل الدكتور نور الدين زازا، رئيس الحزب، رسالة تعزية لأهالي عامودا باسم معتقلي الحزب في السجن.
=KTML_Bold=روضة ملا أحمد نامي=KTML_End=
رووداو: من خلال كتاب روضة (Gulzara) ملا أحمد نامي (2020/ستوكهولم)، قمتم بعمل كبير لإحياء ذكرى وآثار والدكم. ما الذي دفعكم لإعداد هذا الكتاب، وما هي الوثائق أو الذكريات الجديدة والمهمة التي صادفتموها أثناء عملية الجمع؟
سامي نامي: الكتاب مزدان بالكتابات، والأحداث، والتجارب، وكدح ونضال الوطنيين الكورد ونشاطات الحركة الكوردية. لقد جمعتها بالكامل مما سمعته وقرأته من مذكرات وكتابات والدي ملا أحمد نامي، ولأنني عشت شخصياً مع عدد منهم وما زلت أذكرهم جيداً، وتعرفت على آخرين من خلال الثقاة الصادقين. كما تضمن الكتاب حفلين تأبينيين لذكرى نامي في القامشلي، زُينا بقصائد وخطابات ورسائل محبي نضال نامي في مجال الكوردايتي.
يقول نامي في مقدمة كتاب حريق سينما عامودا: عندما رأيت أن قصة حريق سينما عامودا تُعد واحدة من المآسي الكبرى التي وقعت في بلادنا، لم أشأ أن تذهب هي الأخرى طي النسيان بلا أثر، فقد وقعت آلاف القصص والمآسي ولم تُكتب، فوقعت فريسة للضياع.
وأنا أيضاً أخذت على عاتقي أن أبقي تلك التجارب والأحداث حية عبر صفحات هذا الكتاب بقلمي. قمت برحلة، وقدمت باقة ورد من زهور ورياحين روضة نامي له ولرفاق دربه، أولئك الذين ناضلوا بصمت ودون كلل سياسياً واجتماعياً وثقافياً، حتى أنارت أشعة فكرهم دروب الأجيال الجديدة كشمس حية. ولا شك أن نضال وعمل هؤلاء الخالدين سيظل حياً بالوفاء.
=KTML_Bold=نامي والبارزاني الخالد=KTML_End=
رووداو: يُلاحظ أن نامي كان يلمّ باللهجة السورانية أيضاً، هل هذا صحيح؟ حيث يضمن بعض الأبيات السورانية في قصائده. هل كانت له علاقات بجنوب كوردستان وشعرائها وشخصياتها الثقافية والسياسية؟
سامي نامي: في 14-07- 1958، وبعد نجاح الثورة العراقية، جاء في المادة الثالثة من الدستور المؤقت للجمهورية أن الجمهورية العراقية هي جمهورية العرب والكورد. قرر سيدايى –ملا- (بارزاني) العودة مع رفاقه من الاتحاد السوفييتي السابق إلى الوطن. وقرر ملا أحمد نامي الذهاب إلى بغداد لرؤية البارزاني والترحيب به.
يقول نامي: حصلت على جواز سفر بصعوبة بالغة، وفي نهاية شهر كانون الأول 1958، انطلقت بالقطار نحو بغداد. عند وصولي، توجهت فوراً بسيارة أجرة إلى قصر صباح، ابن رئيس الوزراء العراقي السابق نوري السعيد، الذي أصبح منزلاً للبارزاني. فرح البارزاني بقدومي كثيراً وقال لسكرتيره: (اعلم أن ضيفي عزيز جداً على قلبي؛ كوردي، وضيف، وملا، وشاعر، ألا يستحق تقديراً وقيمة كبيرة؟ لذا أطلب منك تجهيز غرفة من غرف القصر لنوم وإقامة ضيفي). طبعاً قد يتساءل البعض لماذا يقول نامي (سيدايى/الملا) البارزاني؟ والجواب هو: في بداية الضيافة كنت أناديه بالرئيس أو (Seyda). لكنه قال لي فوراً: لا يا سيدا! إذا كنت تحبني كثيراً، نادني (Seyda). كنا نجلس كثيراً في مطبعة كيوي موكرياني، وكان مجلسنا يضم مثقفين كورد، وكانت نقاشاتنا تدور دائماً حول اللغة الكوردية والكتابة بالأحرف اللاتينية، وكنت أدعو دائماً للكتابة باللاتينية لأنها الأنسب للغة الكوردية، ولتكن صيغة مشتركة لكافة اللهجات الكوردية مستقبلاً. كان مجلس بشير مشير يضم مثقفين وسياسيين ووطنيين كورد، وتطرح فيه مواضيع شتى.
بعد 20 يوماً، وبدعوة من اتحاد معلمي كوردستان، ذهبت إلى السليمانية للمشاركة في مهرجان ذكرى الشاعر الكبير فائق بيكس. في ذلك الصباح ركبت القطار مع الشيخ محمد عيسى والأستاذ جلال طالباني، وبعد ساعات وصلنا كركوك وحللنا ضيوفاً عند الأستاذ عمر دبابة، سكرتير اللجنة المحلية للحزب الديمقراطي الكوردستاني في كركوك.
بعد يومين توجهنا نحو السليمانية. زرنا اتحاد كتاب كوردستان، ونقابة معلمي كوردستان، واتحاد الطلبة، واتحاد الشباب، ومحافظ السليمانية. كان الحديث في كل الزيارات عن وضع الكورد وكوردستان. ثم زرنا الشيخ محمد الخال وكان الحديث غالباً باللهجة السورانية.
يتابع نامي قائلاً: في يوم ذكرى الشاعر فائق بيكس، حضرنا المهرجان. قال مدير المهرجان: (باسم جمهور المهرجان أدعو السيد نامي إلى المنصة ليلقي كلمة في هذه الذكرى).
قلت ملبياً الدعوة: (أرى نفسي سعيداً ومحظوظاً جداً لمشاركتي في هذه الذكرى، مهرجان ذكرى بيكس الخالد، الشاعر والأديب العظيم. بيكس لم يمت، بلا شك سيظل بيكس حياً في قلوب وذاكرة الكورد الوطنيين للأبد)، وختمت كلمتي بقصيدة لي.
في اليوم التالي ذهبنا إلى شقلاوة لحضور المؤتمر الأول لاتحاد معلمي كوردستان. وبناء على طلب المشاركين، ألقيت كلمة ارتجالية وختمتها ببيتين من قصيدتي (ألم وعتاب). وفي طريق العودة لبغداد، زرنا تكية الطالبانيين لزيارة شيخ التكية الشيخ جميل طالباني في كركوك. كما زارنا ابن الملا محمد كويي، وكان نائباً كوردياً في البرلمان العراقي آنذاك، ووالده كان شاعراً مشهوراً. بعد شهر، وفي سهرة مسائية، استأذنت السيد البارزاني للمغادرة.
عندما كان الشاعر هزار موكرياني في القامشلي، كان حديثه باللهجة السورانية، وكان نامي قد حفظ عدداً من القصائد السورانية وقرأ كتباً كثيرة، مما ساعده على التحدث والقراءة بالسورانية.
=KTML_Bold=جمعية اتحاد الشباب الديمقراطي الكوردي=KTML_End=
رووداو: تتحدثون في كتابكم مشاهد من التاريخ المفقود (2000) عن جمعية كوردية كنتم أحد مؤسسيها، وأقصد جمعية اتحاد الشباب الديمقراطي الكوردي في سوريا. في أي عام وتحت أي ظروف أسستموها؟ من هم المؤسسون؟ وما دور مام جلال ومعرفتك به؟ وما هي شروط العضوية والأهداف الرئيسية؟ ولماذا قررتم دمجها مع الحزب الديمقراطي الكوردي في سوريا؟
سامي نامي: في العام الدراسي 1953-1954 في القامشلي، كان عدد الطلاب الكورد في المدرسة الإعدادية الرسمية يصل إلى 20 طالباً، وكنت واحداً منهم. كان عدد منا أعضاء في اتحاد الشباب العالمي. كونت صداقة صادقة مع الجميع، لا سيما مع عبد العزيز علي عبدي، فقد كنا أصدقاء طفولة وأعضاء في اتحاد الشباب. ذات يوم عرفني عبد العزيز على درويش ملا سليمان ومحمد ملا أحمد، وكان محمد معلماً ابتدائياً في القامشلي. ازدادت صداقتنا متانة يوماً بعد يوم، وتقاربت أفكارنا ومعتقداتنا، خاصة حول وضع الكورد وكوردستان والتنظيمات السياسية في الوطن. مع الوقت تحولت جلساتنا إلى اجتماعات وتبلورت أهدافنا، حتى قررنا تأسيس تنظيم كوردي مستقل لخدمة شعبنا بشكل صحيح. كان الرفاق الشيوعيون يدعوننا للانضمام للحزب، خاصة أعضاء اتحاد الشبيبة العالمي، لكنني أوضحت لهم باسم الرفاق أننا إذا قمنا بعمل سياسي يوماً ما، فسيكون ضمن تنظيم كوردي.
في21-04-1954، تأسست جمعية اتحاد الشباب الديمقراطي الكوردي في سوريا في مدينة القامشلي. المؤسسون كانوا: محمد ملا أحمد، عبد العزيز علي عبدي، درويش ملا سليمان، وأنا. تضمن برنامج الجمعية عدة نقاط وكانت أهدافها: تحرير وتوحيد الكورد وكوردستان، النضال من أجل الديمقراطية، النضال لتحرير الشعب الكوردي، استخدام برنامج للتدريس باللغة الكوردية في المدارس الكوردية، جمع المخطوطات والآثار الثقافية الكوردية وطباعتها، وإصدار جريدة كوردية بالأحرف اللاتينية.
أخذت الجمعية مكانة مرموقة في المجتمع الكوردي. مع الوقت زاد الرفاق وتفرعت خلاياها في مدن وقرى الجزيرة. التف الشباب الكورد حول الجمعية بحماسة وصدق وانضموا إليها لأنهم رأوا فيها آمالهم. هنا أستطيع القول إن جمعية الشباب الديمقراطي الكوردي كانت أول تنظيم سياسي بين كورد سوريا بعد انهيار جمعية خويبون.
=KTML_Bold=البارتي وجمعية الشباب=KTML_End=
رووداو: برأيك، هل كان حل تلك النوادي والجمعيات والمنظمات ودمجها في صفوف الحزب المؤسس حديثاً (البارتي) – وما زالت هناك خلافات حول الاسم وتاريخ التأسيس – عملاً صائباً؟
سامي نامي: باختصار، انضمامهم كان أمراً صحيحاً، ولم يكن ذلك هو السبب في الخلافات التي ظهرت لاحقاً في البارتي. عندما تأسس الحزب الديمقراطي الكوردي في سوريا في 14 حزيران 1957، كان الدكتور نور الدين زازا قد أنهى دراسته في سويسرا وعاد إلى سوريا، وفي نفس الوقت كان مام جلال طالباني يعيش كلاجئ في سوريا وينهي دراسته في الحقوق بجامعة دمشق.
قام هذان الرجلان بعمل جليل لجمع كافة التنظيمات الكوردية السورية داخل حزب واحد، وكان قدومهما للقامشلي لهذا الغرض. في 30 تشرين الثاني 1958، عُقد اجتماع في منزل الدكتور أحمد نافذ بالقامشلي. بالإضافة للدكتور نور الدين زازا ومام جلال، شاركتُ أنا ودرويش ملا سليمان في الاجتماع. تحدث الدكتور زازا وقال: تعلمون أن البارتي تأسس من عدة منظمات كوردية، لكن بعض المنظمات لم تنضم حتى اليوم، وعلمنا أنكما مع رفاق آخرين تقودون جمعية الشباب. لذا نطلب منكم لقاء رفاقكم واتخاذ قرار الانضمام للبارتي ، ليصبح حزباً لكل كورد غربي كوردستان.
كما قلت سابقاً، بقينا أنا ودرويش وحدنا في مسؤولية الجمعية، لأن محمد ملا أحمد كان في الخدمة الإلزامية، وكان لقاؤه صعباً في ذلك الوقت القصير. فاضطررنا أنا ودرويش لاتخاذ القرار. فما دامت كل المنظمات والوطنيين انضموا للبارتي، ونحن نرى أنفسنا تنظيماً كوردياً يعمل للكوردايتي، فلا بد أن نصبح جزءاً من البارتي.
عُقد الاجتماع في اليوم التالي وفي نفس المكان. بدأتُ الحديث وقلت: تعلمون أن جمعية الشباب منظمة سياسية كوردية، وباعتقادنا هي غنية جداً بعملها وبعدد أعضائها، ومع ذلك قررنا الانضواء تحت مظلة البارتي بناء على طلبكم . عندما وضعنا النظام الداخلي وأسماء وأعداد رفاق الجمعية أمامهم، باركوا لنا بفرح، ومنذ ذلك اليوم أصبحت جمعية الشباب الديمقراطي الكوردي جزءاً من الحزب الديمقراطي الكوردي في سوريا.
أذكر كان حفل زفافي في اليوم التالي، وكان الدكتور زازا ومام جلال من المدعوين، ورقصوا مع المدعوين في باحة منزلنا.
=KTML_Bold=النضال والسجن=KTML_End=
رووداو: تعرضت للسجن كثيراً في سوريا بسبب هذه الجمعية ونشاطك السياسي والثقافي، هل تحدثنا عن ذلك؟
سامي نامي: بذريعة عملي ونضالي في الحركة الكوردية السياسية والثقافية، خاصة بعد تأسيس جمعية الشباب وعضويتي في الحزب الديمقراطي، سُجنت كثيراً وحدي أو مع والدي. اعتقالي الأول: في 02-11-1958، خلال تجمع للطلاب في قاعة مسرح المدرسة الثانوية بالقامشلي، صرختُ بصوت عالٍ وغاضب بهذا الشعار: عاشت الأخوة الكوردية العربية، فاعتُقلت في اليوم التالي!
الاعتقال الثاني: في ذكرى تأسيس الجمهورية العربية المتحدة، وفي يوم 20-02-1959، اعتُقلت مع والدي من قبل المباحث.
الاعتقال الثالث: في 12/08/1960، اعتُقل رئيس الحزب وأعضاء اللجنة المركزية واللجان المنطقية (وكنت واحداً منهم) وحوكموا في محكمة حلب. أُطلق سراح عدد من الرفاق، وفي 04/09/1960 نُقلنا نحن ال 32 رفيقاً (كنت بينهم) إلى سجن المزة في دمشق، ثم حوكمنا أمام المحكمة العسكرية العليا لأمن الدولة بدمشق. كما كنا نخضع أنا ووالدي كثيراً لتحقيقات المباحث معاً.
=KTML_Bold=كان سبباً في أن أتشجع وأطبع نتاجاتي=KTML_End=
رووداو: لست فقط ابن ملا أحمد نامي، بل أنت شاهد ومشارك في تاريخ كورد سوريا. هل لك أن تحدثنا عن نفسك قليلاً، وأقصد أعمالك الكتابية والإبداعية؟
سامي نامي: في صغري، ومع أطفال قرية تل شعير، وفي حجرة الملا أحموى (خوارزي)، وهو رجل حافظ للقرآن وكفيف من جزيرة بوتان، تعلمنا القرآن حتى ختمته، وبمساعدة والدي حفظت نوبهارا بجوكان لأحمدي خاني، وتعلمت القراءة والكتابة الكوردية في مدرسة والدي. منذ زمن طويل بدأت بالكتابة بالكوردية ونشرت في العديد من المجلات والصحف والمواقع.
ذات يوم، قال لي الكاتب والناقد والشاعر الراحل رزو أوسي: يجب أن تطبع هذه المخطوطات ليستفيد القارئ الكوردي منها، فلا شك أن كتاباتك لا تقل عن كتابات الكثيرين. فكان ذلك سبباً في أن أتشجع وأطبع أعمالي.
=KTML_Bold=جلادت بدرخان حملني وقبّلني!=KTML_End=
رووداو: ترد في كتاباتكم أسماء لشخصيات معروفة مثل جكرخوين، عثمان صبري، قدري جان، نور الدين زازا، والبدرخانيين. هل تحدثنا عن ذلك الجيل الذهبي وعلاقتك ووالدك بهم؟ كيف كانت تلك المجالس الثقافية والجو السياسي؟
سامي نامي: لقد كررت مراراً أنني رافقت والدي في عدد من المجالس والنشاطات الكوردية التي تأسست آنذاك، وهكذا تعرفت على هؤلاء الوطنيين المشاهير مثل الدكتور أحمد نافذ، والدكتور نور الدين زازا، وعثمان صبري، وجكرخوين، وقدري بك جميل باشا، وأكرم بك جميل باشا، وعبد الرحمن آغا علي يونس، ورشيدى كورد، وهجار موكرياني، وحسن هشيار، وعبدي تيلو. وفي دمشق قدري جان، وممدوح سليم، وخالد قطرش، والأمير جلادت علي بدرخان. في اجتماع ببلدة تربه سبيه وفي غرفة منزل حاجو آغا، كانت الغرفة تغص بالضيوف والقرويين. سألني الأمير جلادت: ابن أخي، هل تقرأ بالكوردية؟ قال والدي: نعم يا سيدي، ويحفظ قصيدة قدري جان المسماة (بارزاني) أيضاً. أحضروا طاولة صغيرة، وصعدتُ عليها وألقيت قصيدة قدري جان:
(بارزاني بارزاني
من ذا الذي لا يعرف هذا الاسم
الكل رآه والكل سمعه
بارزاني بارزاني)
صفق لي الحضور بحرارة. بعد انتهائي، جاء الأمير جلادت، وحملني وقبّلني، وأجلسني بينه وبين حسن آغا حاجو.
رووداو: مدح الشاعر جكرخوين في ديوانه الأول شرارة ولهيب والدك بقصيدة إلى أحمد نامي. هل تحدثنا عن هذه العلاقة اللافتة بين الشاعرين الكبيرين؟
سامي نامي: بدأت صداقة نامي وجكرخوين منذ دراستهما في حجرات الفقهاء (المدارس الدينية التقليدية)، واستمرت طوال حياتهما، لا سيما صداقتهما الثقافية ونضالهما في الجمعيات الكوردية، حتى أصبحت تلك الصداقة سبباً في مودة عائلتيهما أيضاً. مدح جكرخوين نامي في قصيدته، ونامي أيضاً مدح جكرخوين في العديد من قصائده، مثل قصيدة: رسالة تهنئة لديوان جكرخوين.
(شكراً، ومجدداً شكراً أخي جكرخوين
القلوب الحزينة اليوم ابتهجت
حين حملنا ديوانك وجلبناه
أخذناه ووضعناه على عيوننا)
=KTML_Bold=رزو أوسي لا يُنسى=KTML_End=
رووداو: الراحل رزو أوسي، كان صهركم وشخصية هامة في الأدب الكوردي. تحدثت عنه مراراً بعاطفة ودافعت عنه. علاقتكما لم تكن مصاهرة فحسب، بل صداقة ورفقة ثقافية. هل لك أن تحدثنا عن رزو وشخصيته، وما هي أمانيه التي لم تتحقق؟
سامي نامي: الكاتب واللغوي والناقد والشاعر رزو أوسي، قدم خدمات جليلة للأدب الكوردي. كان إنساناً رحيماً، محباً للأصدقاء، ومرهف الحس. كل من عرف رزو أو عاش معه لن ينسى نضاله أبداً، لأن العالم لا يخلو من الوفاء والأوفياء. زملاء قلمه، وقراء كتاباته، وطلابه الذين علمهم الكوردية في الأماكن الضيقة والسرية، ومستمعو صوته، يعرفونه جميعاً وسيظل حياً في ذاكرتهم. وسنبقى أوفياء له على الدوام، كوفائه للأمة واللغة الكورديتين. لهذه الخصال، احتضنته بصدق وحرارة كصديق، وابن، وصهر (زوج ابنتي نیگار)، ووالد لحفيدي سالار ورولان. رزو لن يُنسى وسيظل حياً في سماء الثقافة الكوردية.
=KTML_Bold=الحظ (التوافق) خير من الشطارة=KTML_End=
رووداو: نلاحظ أنك تدافع بلا كلل عن رزو أوسي وعن والدك الملا نامي. وأحياناً ترد بنقد لاذع على من تعتقد أنهم هضموا حقهما، لماذا؟
سامي نامي: المثل الكوردي يقول: Lihevhatin ji jêhatbûnê çêtir e (بمعنى: أن يحالفك الحظ أو التوافق خير من أن تكون شاطراً/ماهراً). نعم هذا صحيح، فوفقاً للأحداث، غالباً ما تقف الفرصة بجانب الكثيرين وتضعهم على المسرح اليومي تحت أضواء الشهرة. إن كان شاعراً يصبح أمير الشعراء، وإن كان عالماً يصبح علامة عصره، وإن كان سياسياً يصبح السياسي الأوحد. ورغم ما في كلامي من بعض القسوة، إلا أنني أعتقد أن معظمه صحيح. فليسوا قلة أولئك الذين حُرموا من حقوقهم الطبيعية، وما زالوا، لأن كما يُقال دولاب الفلك أبعدهم عن الشهرة. ملا أحمد نامي ورزو أوسي كانا من هؤلاء الذين أنقذهم دولاب الفلك من خلف ستار المجهول، ليُعرفا في حياة الكوردايتي ككاتبين ولغويين وشاعرين.
رووداو: عام 2000 نشرت عملك مشاهد من التاريخ المفقود. وقعت عيناي عليه لأول مرة في منزل أحد أقربائي. كان من أوائل الكتب التي قرأتها بالكوردية. لفت نظري بطباعته الجميلة ومحتواه الغني. حدثنا عنه أكثر؟
سامي نامي: الجواب في مقدمة الطبعة الأولى للكتاب بقلم زاغروس حاجو، ومما جاء فيها: هناك رأي يقول إن الكورد ينسون تاريخهم وتجاربهم بسرعة، لذا يقعون في أخطائهم القديمة ولا يستفيدون من التجارب. أنا شخصياً لا أصدق أن الكورد ينسون أكثر من غيرهم، لكن الحقيقة الأخرى هي أن الكورد قلما كتبوا وطبعوا تاريخهم. الأستاذ سامي أدرك هذه الحقيقة بوعي وكتب (مشاهد من التاريخ المفقود). هذا الكتاب نموذج وخطوة هامة في مجال حفظ وتدوين تاريخ وتجارب الشعب الكوردي في منطقة خاصة وفترة خاصة. الكاتب نفسه شارك في أحداث جسيمة في تاريخ غربي كوردستان... لذا فإن كتاب الأستاذ سامي شاهد على الكثير من الأحداث المفقودة والمنسية.
حسب زاغروس حاجو: يمثل هذا الكتاب أنموذجاً وخطوة هامة في مجال الحفاظ على تاريخ الشعب الكوردي وتجاربه في منطقة معينة، خلال حقبة خاصة وفي مرحلة معقدة، وتدوينها وتسجيلها. لقد شارك الكاتب بنفسه في الأحداث والتجارب الجسيمة في تاريخ كوردستان الغربية. لقد كان مكان وإقامة وعمل وعلاقات المربي الفاضل، الملا أحمد نامي، بكل عظمته وأهميته، مرتبطة دائماً بأحداث مصير الكورد في هذا الجزء من كوردستان. الأستاذ سامي، هو أيضاً ابن وتلميذ ذلك المربي العظيم، وهو من جيل الشباب الوطنيين الذين انخرطوا في العمل السياسي وشكّلوه. ولهذا السبب، فإن كتاب الأستاذ سامي يعد شاهداً على العديد من الأحداث المفقودة والمنسية.
=KTML_Bold=الجسد في الخارج، والروح في الوطن=KTML_End=
رووداو: تعيش في ستوكهولم منذ زمن طويل. كيف أثرت حياة الغربة عليك وعلى نتاجك الثقافي؟ وكيف تستطيع البقاء مرتبطاً بالوطن والثقافة بهذه الحرارة؟
سامي نامي: بعد 26 عاماً من العمل كمعلم، كنت أعتقل كثيراً وأُفصل من العمل، فاضطررت للهجرة عام 1999 وأعيش الآن في ستوكهولم بالسويد. في البداية، كانت الغربة صعبة، وكنت أدعو الله ألا تطول إقامتنا لنعود. مع الوقت، اعتدنا، وتكونت صداقات مع مثقفين كورد من الأجزاء الأربعة، وطبعت كتبي، وأصبحت عضواً في اتحاد الكتاب الكورد في السويد، وشاركت في النشاطات، لكنني مع ذلك ظللت وسأظل مشتاقاً للوطن وأهله.
=KTML_Bold=كنت ابناً وحيداً ومدللاً=KTML_End=
رووداو: عندما تنظر للوراء، إلى هذه الحياة المليئة بالنضال والحزن والفخر، ماذا ترى؟ أي حقبة أو حدث ترك الأثر الأعمق؟
سامي نامي: كما قلت مراراً، كنت وحيداً ومدللاً لوالدي الكاتب والشاعر، وأخاً لخمس أخوات. كان والدي عضواً فعالاً أو مسؤولاً في الجمعيات الكوردية، وكلما حضر فيها كان يأخذني معه ليتفتح وعيي على الكوردايتي، ولأتعرف على هؤلاء السياسيين عن قرب، وهذا بشكل عام هو ما شكل حياتي الكوردوارية.
رووداو: لماذا لم تُطبع مذكرات نامي ما أتذكره حتى الآن؟ وهل له أعمال أخرى لم تُطبع؟
سامي نامي: تناول نامي قلمه وكتب قليلاً عن حياته ودراسته في حجرات الفقهاء في شمال وجنوب كوردستان، وصولاً لكونه ملا قرية تل شعير، وعدد من الأحداث في سوريا وغربي كوردستان في مخطوطته ما أتذكره. للأسف، مرض القلب وضيق التنفس والموت الغادر لم يمهلوه لإنهائها. كتب فقط 33 صفحة مخطوطة بالكوردية بالأحرف العربية، قمت بتحويلها للأحرف اللاتينية وطبعتها ونشرتها ضمن كتابي مشاهد من التاريخ المفقود (منشورات APEC، ستوكهولم، ص 11-18).
رووداو: وأعمالك أنت، هل هناك شيء قيد الطبع؟
سامي نامي: للأسف، بسبب سوء وضع عيني، لم أعد أستطيع كتابة وطباعة أعمال أخرى.
يجب أن نكون صارمين مع بعضنا، لا عنيدين ضد بعضنا
رووداو: في الختام، ما هي رسالتك للشباب الكوردي اليوم، ممن يريدون السير على دربكم؟ ماذا عليهم أن يفعلوا لحماية اللغة والثقافة والتاريخ؟
سامي نامي: إنه لموضع فخر أن نرى الشبان والشابات الكورد يحملون عبء الأدب الكوردي بحماسة ويخدمون لغتهم وثقافتهم بلا كلل. يجب ألا تقتصر كتاباتهم على نظم الشعر، بل لتشمل كافة الألوان الأدبية: التاريخ، الفولكلور، المذكرات، الأحداث، القصة والرواية، المسرح... ليدخلوا اللغة الكوردية في مصاف لغات الأمم المتقدمة. ولنرَ ما يطلبه الراحل رزو أوسي من الكتاب: ...يجب أن نكون صارمين (نقدياً) مع بعضنا، ولكن لا نكن عنيدين ضد بعضنا. والمقصود ألا نصفق لبعضنا ونجامل بلا طائل، وألا نجعل من نتاجات بعضنا بحوراً بلا قاع، بل أن نتناول نتاجات بعضنا بصرامة، ولكن تلك الصرامة المبنية على أسس منهجية ومترابطة، بعيداً عن التجريح والإيذاء الشخصي، لنتمكن من بناء أدب كوردي واعٍ. نعم، هذا هو واجب الكتاب والنقاد الكورد.
رووداو: شكراً جزيلاً!
سامي نامي: شكراً جزيلاً. أتمنى لكم ولشبكة رووداو الإعلامية النجاح. دمتم لهذه الأعمال المباركة، مع تحياتي.
=KTML_Bold=نبذة عن حياة سامي ملا أحمد نامي=KTML_End=
• ولد عام 1939 في غربي كوردستان، في قرية تل شعير آشيتا التابعة للقامشلي.
• أنهى الابتدائية في القرية، وتعلم القراءة والكتابة الكوردية في مدرسة والده.
• استقرت عائلته في القامشلي عام 1952، حيث أكمل الإعدادية والثانوية.
• درس سنتين في كلية الحقوق بجامعة دمشق، لكنه اضطر لترك الجامعة بسبب ضيق الحال.
• تفتح وعيه القومي مبكراً بفضل والده، وتعرف على قادة الحركة الكوردية.
• انضم لاتحاد الشبيبة الديمقراطي العالمي عام 1950.
• عام 1954 أسس مع رفاقه جمعية اتحاد الشباب الديمقراطي الكوردي في سوريا.
• بعد تأسيس الحزب الديمقراطي الكوردي (البارتي)، وبموافقة والده (مستشار الجمعية) وبطلب من د. نور الدين زازا ومام جلال طالباني، قرر المؤسسون دمج الجمعية بالحزب.
• تعرض للاعتقال مرات عديدة، أبرزها حملة اعتقالات 1959-1960.
نتاجاته المطبوعة:
o كتاب مشاهد من التاريخ المفقود (ستوكهولم، 2000).
o كتاب روضة ملا أحمد نامي (ستوكهولم 2020، والقامشلي 2024).
• قام بنقل أعمال والده من الأحرف العربية إلى اللاتينية ونشرها:
o ديوان شعر داخوازامه/Daxwazname (1986، 1995).
o كتاب حريق سينما عامودا (1987، 2024، وترجم للسورانية).
o قاموس Kozar (كوردي-عربي وبالعكس) وقواعد (إسطنبول 2023).
o سيرة ما أتذكره (ضمن كتابه الخاص).
• عمل موظفاً ثم مدرساً ل 26 عاماً حتى أُجبر على التقاعد لأسباب سياسية وأمنية.
• هاجر إلى السويد عام 1999 ويعيش حالياً في ستوكهولم. [1]

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